Saturday, May 8, 2010

आदाब दोस्तों

एक ग़ज़ल जो कभी कही गयी थी नज्र है आपकी समातों को .............

जब मेरी तबाहियों पर, मुंसिफी की जाएगी
खुदा जाने किस तरह से, शायरी की जाएगी

तू तस्सव्वुर तो ज़रा कर, इश्क की बरबादियाँ
तुझसे जीते जी कहाँ, ये खुदकुशी की जाएगी

जब समन्दर सूख जायेगा, किसी की याद में
तब किसी के आसुओं से, दिल्लगी की जाएगी

चाँद के आगोश में ,सूरज भी जब ढल जायेगा
फिर जला के दिल हमारा, रौशनी की जाएगी

दोस्तों से दोस्ती , छोडो मियां रहने भी दो
अब तो बस दुश्मनों से दुश्मनी की जाएगी

रंजीत........

कुछ शेर आपके हवाले बाद में भी करूंगा इस ग़ज़ल के ......................तैयार रहिये

Monday, May 3, 2010

आदाब दोस्तों

एक नज़्म जिसका उन्वान है ........क्या यही कहानी है लोगों की ..........आप सभी को नज्र

क्या है आज ज़िन्दगी हमारी
दो राहों पर खड़ी बेचारी
दर्द झेलती बारी बारी
फिर भी कहती अभी हारी

जीवन का बस नाम है लड़ना
यही ज़ुबानी है लोगों की
क्या यही कहानी है लोगों की


अमीरी का कहीं बजा बिगुल है
गरीबी की तो बत्ती गुल है
सड़क पे गर्मी सड़क पे सर्दी
बारिश में फुटपाथ का पुल है

जिसके नीचे सोती दुनिया
छत ये सुहानी है लोगों की
क्या यही कहानी है लोगों की


पैसे कि है ऊंची छोटी
निर्धनता की बेटी छोटी
भूख पर बिकती रहती इज्ज़त
कोठे पर नाचती रोटी

उस रोटी के लिए मिट गयी
आज जवानी है लोगों की
क्या यही कहानी है लोगों की


पैरों में पड़ते है छाले
दीवार गिरी घर में हैं जाले
हुई है लाजो अब सोलह की
चिंताएं हैं जीभ निकाले

कब होगी बिटिया कि शादी
ये हैरानी हैं लोगों की
क्या यही कहानी लोगों की

चलने का है नाम ज़माना
मेहमानों का आना जाना
चिड़िया चहकी लोग खड़े हैं
आया कोई जाना पहचाना

अंतिम सत्य यही है बंधू
कब्र निशानी है लोगों की
क्या यही कहानी है लोगों की

रंजीत
इस नज़्म के कुछ और बंद बाद में अर्ज़ करूंगा..............