Tuesday, June 15, 2010

आदाब दोस्तों

एक ग़ज़ल समात करें जो मेरे पसंदीदा शायरों में से एक बशीर बद्र साहब की ज़मीन पर है ..........

मैं
ज़हन में उसके सदा रहा कुछ कहा नहीं कुछ सुना नहीं
बस ख़ाक बन के उड़ा रहा कोई हवा नहीं कोई धुवां नहीं

यहाँ शख्स शख्स नज़र में है , वहां लफ्ज़ लफ्ज़ खबर में है
ये ज़िन्दगी किस सफ़र में है कोई लुटा नहीं कोई बचा नहीं


ये अजीब हिज्रो विसाल है , की उरूज़ ही जवाल है
यहाँ हर किसी को ख़याल है , कोई उठा नहीं कोई गिरा नहीं


ये चराग है वो मकान है ,के दोनों का इम्तेहान है
मगर हर किसी को गुमान है , कोई जला नहीं कोई बुझा नहीं


ये अजियतें ये इनायतें , ये शिकायतें ये हिदायतें
हैं सब उसी की रहमतें , कोई ज़मी नहीं कोई खला नहीं

रंजीत

4 comments:

  1. आपकी यह रचना मजेदार है.
    अब अगली का इंतज़ार है...

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  2. उर्दू के लफ्जों का सौंदर्य जगजाहिर है। अज्ञानी होते हुए भी अर्थ समझ में आना ग़ज़ल की सार्थकता है। यह रण रंजीत ने जीत लिया है।

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  3. bahut sunder gajal.shaandar prastuti.......

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  4. Aj phli bar apko youtube par suna to majbur ho gya apko google krne pe.. fir yaha a pahucha hu ar behad khush hu

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