Tuesday, June 1, 2010

आदाब दोस्तों

मुआजरत कि कई दिनों से आपसे रूबरू नहीं हो सका कुछ मशरूफियत थी तो वक़्त ने इज़ाजत नहीं दी ......

ले चलता हूँ आपको दीवानगी की इन्तेहा पर .......


आग हवा मिटटी और पानी हम जैसे दीवानों से
रस्मे पुरानी कसमे कहानी हम जैसे दीवानों से

या तो ख्यालों में आना , आना तो फिर जाना
छोड़ भी दो करना मनमानी हम जैसे दीवानों से

जितनी भी रस्मे थी वफा की हमने सबको निभाया है
ज़फ़ा की रस्मे तुमको निभानी हम जैसे दीवानों से

कितनी शिद्दत से की महब्बत फिर भी तुझपे दाग नहीं
चाँद हो गया पानी पानी, हम जैसे दीवानों से

हमने हवाओं को उकसाकर जुल्फों से रुखसार छुआ
अक्सर होती है नादानी, हम जैसे दीवानों से.....

रंजीत......

5 comments:

  1. khoobsoorat, aur masti bhari..
    wah wah wah wah.........

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  2. हम जैसे दीवानों से... कुछ बात है ख़ास

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  3. आप जैसे दीवानों
    और
    हम जैसे मस्‍तानों से
    भरी हुई यह फिज़ा
    मस्‍ती भरे तरानों से।

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