आदाब दोस्तों
मुआजरत कि कई दिनों से आपसे रूबरू नहीं हो सका कुछ मशरूफियत थी तो वक़्त ने इज़ाजत नहीं दी ......
ले चलता हूँ आपको दीवानगी की इन्तेहा पर .......
आग हवा मिटटी और पानी हम जैसे दीवानों से
रस्मे पुरानी कसमे कहानी हम जैसे दीवानों से
या तो ख्यालों में न आना , आना तो फिर न जाना
छोड़ भी दो करना मनमानी हम जैसे दीवानों से
जितनी भी रस्मे थी वफा की हमने सबको निभाया है
ज़फ़ा की रस्मे तुमको निभानी हम जैसे दीवानों से
कितनी शिद्दत से की महब्बत फिर भी तुझपे दाग नहीं
चाँद हो गया पानी पानी, हम जैसे दीवानों से
हमने हवाओं को उकसाकर जुल्फों से रुखसार छुआ
अक्सर होती है नादानी, हम जैसे दीवानों से.....
रंजीत......
Tuesday, June 1, 2010
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wah.....Radeef badi nafasat se nibhaya....Badhai...
ReplyDeletekhoobsoorat, aur masti bhari..
ReplyDeletewah wah wah wah.........
हम जैसे दीवानों से... कुछ बात है ख़ास
ReplyDeleteआप जैसे दीवानों
ReplyDeleteऔर
हम जैसे मस्तानों से
भरी हुई यह फिज़ा
मस्ती भरे तरानों से।
bahut khoob...
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