आदाब
इक ग़ज़ल के ३ शेर आपकी ज़हानतों की नज्र..........
आँखों से बातें नज़र के फ़साने
नए दौर में भी पुराने ठिकाने
हवा से अदावत तो ज़ाहिर है उनकी
फिर भी वो आये दिए को बुझाने
महब्बत की कैसी अजब दास्ताँ हैं
हवा भी न माने, दिया भी न माने
रंजीत
Tuesday, April 13, 2010
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aap achchhe shayar hain ham ye maane...
ReplyDeletekhoob
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