Tuesday, April 13, 2010

आदाब

इक ग़ज़ल के शेर आपकी
ज़हानतों की नज्र..........

आँखों से बातें नज़र के फ़साने
नए दौर में भी पुराने ठिकाने

हवा से अदावत तो ज़ाहिर है उनकी
फिर भी वो आये दिए को बुझाने

महब्बत की कैसी अजब दास्ताँ हैं
हवा भी माने, दिया भी माने

रंजीत

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