दोस्तों ये चंद मुतफ़र्रिक अशआर हैं जो ग़ज़ल के नहीं हैं। एक ही एक शेर कहा था लिहाज़ा वो ऐसे ही पेश कर देता हूँ
मैंने तुझे अपनाने में लम्हा भी गवाया नहीं
तुने मुझे गवाने में सदियाँ गुजारी कैसे
रंजीत
कनंखियों से देखूं उसको बातें करूं किसी और से
खुदा जाने उस घडी दिल गुज़रा किस किस दौर से
रंजीत
अब तुझ पर मेरा ऐतबार नहीं है
क्या ऐतबार है इस नऐतबार का
रंजीत
बातों बातों में दिल तोड़ देते हो
इतनी भी दिल्लगी अच्छी नहीं
रंजीत
ये बात है फ़क़त अपनी अपनी नज़र की
दुश्मनी भी इस क़दर, दुश्मन की क़दर की
रंजीत
जब गावं से निकलता हूँ परदेस जाने को
कब तलक आओगे लल्ला पूछता है घर
रंजीत
क्या कह रहा है नहीं जानता तुझे
यार कितना जानने लगा है मुझे
रंजीत
मेरे शेरों को जो इतना सम्भाल रखा है
ज़रूर दिल में किसी का ख्याल रखा है
रंजीत
मैं अपनी हद खुद बनके बैठा हूँ
नापना है तुझे, आ नाप ले मुझे
रंजीत
ये तन्हाई भी तनहा नहीं होने देती
यादों का ले के कारवां घूमता हूँ मैं
रंजीत
वक़्त अगर आया तो पढूंगा कब्र पर अपनी
जिंदगी बस मेरी इक ग़ज़ल मुकम्मल कर दे
रंजीत
दिया गरीब के घर जब कभी भी जलता है
न जाने हवाओं को कैसे पता चलता है
रंजीत
जाने कितने दिलों पे राज करने लगे हो अब
ज़रा ये तो बताओ कि शेरीयत कहाँ से आयी
रंजीत
दीदार उसका क्या हुआ कि लब भी सिल गए
तस्सवुर में तो जाने कितने शेर कह गया
रंजीत
बात बात पे इलज़ाम रखते हो मुझ पर
क्या अदब कि सरपरस्ती इसको कहते हैं
रंजीत
जमीन और ज़बान दोनों ही मिल गयी
खुमार और फ़राज़ खुदा जाने कब मिले
रंजीत.......
Tuesday, April 13, 2010
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sabhi sher sawaa sher hain...
ReplyDeleteखोके अपने वो होशो हवास बैठा है
ReplyDeleteमुद्दतों बाद आज खुद के पास बैठा है
ज़रूर कि है अंधेरों ने चरागों कि मदद
कहीं पे कोई तो जुगनू उदास बैठा है
Kya kehne janab!!!!!!!!!!
दिया गरीब के घर जब कभी भी जलता है
ReplyDeleteन जाने हवाओं को कैसे पता चलता है
Maan gaye janab!!!!!!!!!!!1
Kya khub Kaha Hain!!!!!!!!!!!1
Very Realistic
Subhan allah kya baat hai Ranjeet ji........
ReplyDeletebohat hi umdha hai apke sabhi sher......
kahan se miljate hain apko aise alfaaz.....
मैंने तुझे अपनाने में लम्हा भी गवाया नहीं
तुने मुझे गवाने में सदियाँ गुजारी कैसे ye to bohot hi behtareen hai
keep it up....!!!!