आदाब दोस्तों ,
ये मंज़र कशी उन दीवाने सामयिन को नज्र जिन्होंने महब्बत और खुदा के फर्क को मिटा दिया .......
पागल उसने मुझको इस कदर बना दिया
गजलों को सिर्फ मेरा हमसफ़र बना दिया
दीवारों दर को देखता हूँ पागलों जैसा
कितना खुशगवार सा मंज़र बना दिया
सोता नहीं ख्याल में एक शब् को भी यहाँ
उसने मेरी हर शब् को यूँ सहर बना दिया
यूँ तो कभी न खोले उसने दिल के दरीचे
बस अपना दिल दरीचों के बाहर बना दिया
जाता हूँ रोज़ ख्वाब में मिलने उसी से मैं
ख्वाबों को उसने मेरा मुकद्दर बना दिया
जीते जी हममे यूँ तो था मीलों का फासला
कब्रों को पर हमारी बराबर बना दिया
रंजीत
Wednesday, April 14, 2010
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wah ustaad...
ReplyDeleteपागल मुझे भी उसने इस कदर बना दिया
ReplyDeleteगजलों को सिर्फ मेरा हमसफ़र बना दिया
दीवारों दर को देखता हूँ पागलों जैसा
कितना खुशगवार सा मंज़र बना दिया
सोता नहीं ख्याल में एक शब् को भी कभी
उसने मेरी हर शब् को यूँ सहर बना दिया
यूँ तो कभी न खोले उसने दिल के दरीचे
बस अपना दिल दरीचों के बाहर बना दिया
जाता हूँ रोज़ ख्वाब में मिलने के वास्ते
ख्वाबों को उसने मेरा मुकद्दर बना दिया
जीतेजी यूँ तो हममे था मेलों का फासला
कब्रों को पर हमारी बराबर बना दिया
bas aapne toh dilke taar ched diye.
Bhula koi saathi yaad aa gaya
bahut Badhiya..............................