आदाब दोस्तों
मुआजरत की बहुत दिनों से आप से रूबरू नहीं हुआ .....दरसल एक हसीं गुनाह हो गया
और वो गुनाह जब कर चुके तो क्या तजुर्बात हासिल हुए ये आपके दरम्यान अर्ज़ करता हूँ इजाजत दें
दिल किसी का जल गया के जब गुनाह कर चुके
कोई मुस्कुरा पड़ा के जब गुनाह कर चुके
गुनाह-ऐ इश्क बेसबब शराब में मढ़ा गया
गुनाह ने बचा लिया के जब गुनाह कर चुके
गुनाह कर के हम फ़क़त यही तो सोचते रहे
कि हो गया गुनाह क्या के जब गुनाह कर चुके
ज़िन्दगी गुनाह थी जो, उम्र भर किये गये
कब्र ने सुला दिया , के जब गुनाह कर चुके
गुनाह रौशनी का था कि तीरगी तबाह थी
चराग था बुझा बुझा के जब गुनाह कर चुके
अंजुमन उज़ड़ गया चमन में आग लग गयी
हर तरफ धुंआ धुंआ के जब गुनाह कर चुके
इक गुनाह इश्क है तो ये गुनाह भी करें
लुत्फ़-ऐ-गम भी हो भला,के जब गुनाह कर चुके
शराफतों के दरम्यां कहाँ बसी है शेरियत
शेर हो गया मेरा के जब गुनाह कर चुके
रंजीत
Tuesday, April 27, 2010
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शराफतों के दरम्यां कहाँ बसी है शेरियत
ReplyDeleteशेर हो गया मेरा के जब गुनाह कर चुके
Katal-e-aam kar chukkey!! :)
Fantastic...
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com