Tuesday, April 13, 2010

दोस्तों एक मतला और एक शेर ..... और दूसरी ग़ज़ल के दो शेर

खोके अपने वो होशो हवास बैठा है
मुद्दतों बाद आज खुद के पास बैठा है

ज़रूर कि है अंधेरों ने चरागों कि मदद
कहीं पे कोई तो जुगनू उदास बैठा है

रंजीत

है कोई चराग या, है कि मेरा दिल
कभी जला जला सा रहता है, कभी बुझा बुझा सा रहता है

है ये मेरा नाम, या है मेरी शोहरत
कभी धुंआ धुंआ सा रहता है , कभी गुँमा गुमाँ सा रहता है

रंजीत

पाकीज़ा होती हैं नज़रें देखकर उसको
ख्यालों में भी गर छूंलूं तो शर्मसार हो जाऊं

सुना है आज दोज़क से दावत आयी है
ज़रा ठहरो मियां मैं भी तैयार हो जाऊं
रंजीत


एक और शेर देखें
दोस्तों

तुम रात याद गये कुछ इस तरह मुझे
किताब तो पूरी पढ़ी पर वरक मुड गया

रंजीत

3 comments:

  1. bahut badhiyaa ....laajawab...apna naam, sandesh aur kalaam alag alag rango aur font mein karenge to padhne me sahooliyat hogee...keep it up shubhkaamnaayein

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  2. sharma jee shukriya

    aapke hukm ki tamil ho chuki hai.......

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