Wednesday, April 14, 2010

दोस्तों एक ग़ज़ल आप सभी की ज़नातों को नज्र


या तो खुले दिल से अपना ले मुझे
या तहे दिल से आजमा ले मुझे

खुद में कब तक सिमटता रहूँगा भला
उससे कह दो कि दिलसे निकाले मुझे

इससे पहले कि, मैं लडखडा के गिरूँ
मैकदे से कहो ,कि सभाले मुझे

क्या कहा तुमने , गम चाहिए उसे
मैं समन्दर हूँ , आके खंगाले मुझे

मर रहा हूँ मैं ,हर एक लम्हा यहाँ
मार दे खुदा, और बचाले मुझे

रंजीत

















3 comments:

  1. roz aise hi kalaam
    likhte raho "Chauhan"

    ReplyDelete
  2. दिलवालों की इस मेहफिल में, वो भी बुलाये जायेंगे
    चराग बुझाये जायेंगे पर , दिल तो जलाये जायेंगे

    आखों ने दावत भेजी है , आज समंदर को शायद
    अश्क बहाए जायेंगे और , कतरे बचाए जायेंगे

    सबने मेरे जज्बातों पर, अपनी बाज़ी खेली है
    कहीं जिताए जायेंगे ,तो कहीं हराए जायेंगे

    मेरी ग़ज़लें गाते रहना , शेर कहीं न सो जाएँ
    जब भी सुलाए जायेंगे हम नहीं जगाये जायेंगे

    Shabdon se mehfil saja di hain janab!!!!!!!!!!
    Hum Bhi aana chahenge...........
    Classsic miyan

    ReplyDelete
  3. Wah Wah kya baat hai

    apne khayalath ka kia acche se izhar kia hai janab

    bohot khub hum to aap ke pankhe hogaye ....!!!!

    ReplyDelete